कभी कभी यूँ ही दिल में ख्याल आता है ......हम सब की दिनचर्या में शायद ही ऐसा कोई पल ,क्षण या लम्हा होगा जब दिलो दिमाग में कोई ख्याल न होता हो। सागर की आती जाती लहरों की तरह न जाने कितने ही ख्याल हमारे मानस पटल पर विचरण करते हैं। और फिर ज़हन के किसी कोने में ऐसे दुबक जाते हैं कि एक के ऊपर एक जमा होते इन ख्यालों को हम अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना ही नहीं पाते या फिर कुछ ख्याल ही हकीकत की भूमि पर कदम रखते हैं। नहीं तो कहीं अंदर ही दम तोड़ देते हैं। इन्हीं ख्यालों को ख़ूबसूरती से जीने के लिए क्यों न इन्हें कागज़ पर अपने शब्दों से उकेर दिया जाए ताकि जब भी कोई प्यारा सा लम्हा दुबारा जीने का मन करे तो एक नज़र उठायें और उन शब्दों के रूप में सहेजी हुई वो यादगार हमारे सामने हो। अब ये हम पर निर्भर है कि हमने अपने ख्याल को किस रूप में सहेजना है। कविता ,कहानी ,ग़ज़ल ,या फिर चित्रकारी।
ऐसा ही जब ख्याल हमारे मन में आया तो निर्मित हुआ ये पटल "एक ख्याल "
इसका मकसद यही है कि अपने उन ख्यालों को जीवित रखें जो हमारी ज़िंदगी ,हमारी सोच ,हमारी कल्पना का हिस्सा हैं। क्या पता इन्हीं सहेज कर रखे ख्यालों से किसी दिन हम भी अपना एक आसमान बना लें या फिर छू लें उसी आसमान को जिस को कभी हसरत भरी निगाह से देखते थे।
तो दोस्तो स्वागत है आपका हमारे इस सफर में जिस को आप लोगों के साथ के बिना मंज़िल नहीं मिल सकती। और शुरू होता है यहाँ से..........
एक ख्याल ..........
ऐसा ही जब ख्याल हमारे मन में आया तो निर्मित हुआ ये पटल "एक ख्याल "
इसका मकसद यही है कि अपने उन ख्यालों को जीवित रखें जो हमारी ज़िंदगी ,हमारी सोच ,हमारी कल्पना का हिस्सा हैं। क्या पता इन्हीं सहेज कर रखे ख्यालों से किसी दिन हम भी अपना एक आसमान बना लें या फिर छू लें उसी आसमान को जिस को कभी हसरत भरी निगाह से देखते थे।
तो दोस्तो स्वागत है आपका हमारे इस सफर में जिस को आप लोगों के साथ के बिना मंज़िल नहीं मिल सकती। और शुरू होता है यहाँ से..........
एक ख्याल ..........
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