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Thursday, February 7, 2019

जिस तन लागे सो तन जागे







जिस तन लागे सो तन जागे

इस बार सर्दियों में छत पर अपनी रसोई के लिए कुछ छोटे और बड़े गमलों में सब्जियाँ लगाई थी। जब बीज को रोपा था तो पौधे निकलने का इंतज़ार था। रोज़ सुबह छत पर जाकर देखना की अब किसी बीज से कुछ फूटा….अब फूटा बस अब पनपा...उन नन्हे नन्हे पौधों को मिट्टी से बाहर निकलेते देख, बढ़ते देख जो खुशी मिलती है उसको शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है।अब तक तो सब बहुत अच्छा चल रहा था । परंतु ये दो दिन की मूसलाधार बारिश और ओलावृष्टि ने छोटे छोटे पौधों को खूब नुकसान पहुंचाया। जो कोई छोटे गमले थे वो तो मैंने अंदर कर लिए थे पर बड़े गमलों को….उनको तो हिलाना भी मुश्किल था। अब थोड़ा मौसम ठीक होने और ही देख पाऊँगी।
बात मेरे ही गमलों की होती तो बात कुछ और होती…..वो किसान जिसकी रोज़ी रोटी ही खेती है, अपने लिए हमारे लिए सारे संसार के लिए….नीले अम्बर के सीधा नीचे…...वो किसान अपने खेतों को उठा कर कहाँ जाए, किधर जाए…….किसको फरियाद करे कहाँ गुहार लगाए…..साल भर की मेहनत कुछ दिनों में ही कुदरत के कहर से बर्बाद हो जाती है….वो कहते हैं न कि किये कराये पर पानी फिर जाना….सच में यहां तो वही बारिश का पानी जो वरदान होता है फसलों के लिए ...ऐसे में श्राप बन जाता है…..ये दुख उस किसान को अकेले ही बर्दाश्त करने होता है क्योंकि हम सब तो अपने घरों में बैठे ऐसे मौसम का मज़ा लूट रहे होते हैं...अपनी अपनी रसोइयों में कढ़ाही चढ़ा कर, पकोडे तल कर….

सच ही है न कि जिस तन लागे वो तन जाने……

अमिता

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