Monday, February 25, 2019
Wednesday, February 13, 2019
Happy Valentine's Day
खास नहीं था, हमारे प्यार के
इज़हार के लिए
याद भी नहीं कि वो पहली पहली बार
एक दूसरे से कब इज़हार किया था और कैसे
आपका वो अंदाज़े बयाँ कुछ अलग ही होता था
सब सच कहते कहते, थोड़ा कुछ छुपा जाते
कुछ भी ना कहते हुए भी
आँखों से होते हुए
दिल की गहराइयों में उतर जाते
आज इतने सालों बाद भी सिर्फ
ये दिन ही हमारे प्यार का साक्षी नहीं होता
वो हर पल ,हर लम्हा साक्षी बन जाता है
जब हर छोटी छोटी बात
हम एक दूसरे के लिए कहते हैं , सुनते हैं
वो हर छोटे से छोटा काम
एक दूजे की ख़ुशी के लिए करते हैं
और साक्षी होती है, हमारी बिटिया
जो हमें लड़ने नहीं देती
हमारे बहस करने पर वो रो पड़ती है
हमसे फिर न लड़ने झगड़ने का वादा लेती है
और हम दोनों उसके आंसुओं को पोंछते हुए
उससे मनुहार करते हैं कि वो हमसे न रूठे
ये सब तो बस हो जाता है
हम झगड़ते थोड़ी हैं।
हमारा प्यार अब वो भी तो समझती है
हमने कभी उसको, बताया तो नहीं
प्यार का एहसास, वो जान जाती है।
ये एहसास हमारे बीच सिर्फ आज के दिन ही नहीं
हमेशा यूँ ही बना रहे।
लम्हा लम्हा , कतरा कतरा हमारे दिलों का
प्यार का सागर एक दूजे की मोहब्बत से
भरता रहे,
फिर भी, जग की रीत
निभाते हुए मैं आपसे कहती हूँ
हैप्पी वैलेंटाइन डे
अमिता गुप्ता मगोत्रा
Thursday, February 7, 2019
जिस तन लागे सो तन जागे
इस बार सर्दियों में छत पर अपनी रसोई के लिए कुछ छोटे और बड़े गमलों में सब्जियाँ लगाई थी। जब बीज को रोपा था तो पौधे निकलने का इंतज़ार था। रोज़ सुबह छत पर जाकर देखना की अब किसी बीज से कुछ फूटा….अब फूटा बस अब पनपा...उन नन्हे नन्हे पौधों को मिट्टी से बाहर निकलेते देख, बढ़ते देख जो खुशी मिलती है उसको शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है।अब तक तो सब बहुत अच्छा चल रहा था । परंतु ये दो दिन की मूसलाधार बारिश और ओलावृष्टि ने छोटे छोटे पौधों को खूब नुकसान पहुंचाया। जो कोई छोटे गमले थे वो तो मैंने अंदर कर लिए थे पर बड़े गमलों को….उनको तो हिलाना भी मुश्किल था। अब थोड़ा मौसम ठीक होने और ही देख पाऊँगी।
बात मेरे ही गमलों की होती तो बात कुछ और होती…..वो किसान जिसकी रोज़ी रोटी ही खेती है, अपने लिए हमारे लिए सारे संसार के लिए….नीले अम्बर के सीधा नीचे…...वो किसान अपने खेतों को उठा कर कहाँ जाए, किधर जाए…….किसको फरियाद करे कहाँ गुहार लगाए…..साल भर की मेहनत कुछ दिनों में ही कुदरत के कहर से बर्बाद हो जाती है….वो कहते हैं न कि किये कराये पर पानी फिर जाना….सच में यहां तो वही बारिश का पानी जो वरदान होता है फसलों के लिए ...ऐसे में श्राप बन जाता है…..ये दुख उस किसान को अकेले ही बर्दाश्त करने होता है क्योंकि हम सब तो अपने घरों में बैठे ऐसे मौसम का मज़ा लूट रहे होते हैं...अपनी अपनी रसोइयों में कढ़ाही चढ़ा कर, पकोडे तल कर….
सच ही है न कि जिस तन लागे वो तन जाने……
अमिता
Saturday, February 2, 2019
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