Pages

Friday, January 11, 2019

मेरे अंतर्मन की आवाज़

मेरे अंतर्मन की आवाज़


कभी ख़ुशी
कभी गम
कभी प्यार
कभी विरह
न जाने कितने ही
दिल के भाव
कविता में समाये ।
जैसे दरिया की
रवानगी
कभी शांत
कभी उफान
कभी लहर पे लहर
बहती जाये
कविता भी यूँ ही
बह जाये ।
जैसे नृत्य
कभी एगुन
कभी दोगुन
अलग अलग तत्कार
अलग ही ताल
फिर भी सूत्र में बंध
कथा कह जाये ।
कविता भी यही
कमाल कर जाये।
जैसे फूल फूल
बने क्यारी,
क्यारी क्यारी
उपवन बन जाये
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
खुशबू से अपनी
जग महकाये
कविता भी यूँ ही
खिल जाये ।
जुड़ें शब्द शब्द
पंक्ति बन जाये
मुखड़े को फिर
रूप दे जाये
साथ में अंतरा जुड़ जाये
फिर मेरी कविता
कभी नज़्म बन जाये
कभी ग़ज़ल बन जाये
कभी बने तुकान्त
कभी अतुकांत
बन जाये
हर रूप में
हर रंग में
किसी के मन की
आवाज़ बन जाए
मेरा लिखना
सार्थक कर जाये।
यूँ ही निरंतर
“अमिता” कविता
कहती जाये।



अमिता गुप्ता मगोत्रा

No comments:

Post a Comment