Saturday, January 26, 2019
Friday, January 25, 2019
Thursday, January 24, 2019
Tuesday, January 15, 2019
Monday, January 14, 2019
Sunday, January 13, 2019
Friday, January 11, 2019
गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस
दिनांक १ फ़रवरी २०१६
२६ जनवरी २०१६ की सुबह का वक़्त था । शीत लहर ने पूरे उत्तर भारत को अपने आगोश में ले रखा था पर मेरे प्यारे भारत के लिए तो यह दिन विशेष है ।इस दिन भारत अपने संप्रभु , समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष , लोकतांत्रिक गणराज्य होने का जश्न मनाता है तो कोई सच्चा हिन्दुस्तानी इस दिन कहाँ पीछे रहना वाला है या फिर सर्दी से डरने वाला है ।
सुबह के ७ बजे का वक़्त था, मैंने धीरे से पर्दा हटा कर खिड़की के बाहर झांक कर देखा , धुंध और कोहरे की चादर ने सुबह की ख़ूबसूरती को अपने अंदर छुपा के रखा था । ऐसे नज़ारे ने मुझे १९९४ के गणतंत्र दिवस की याद दिला दी जब अपने गृह राज्य जम्मू कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय कैडेट कोर के दिल्ली शिवर में गया हुआ था और शायद वो मेरा आखरी गणतंत्र दिवस था जो मैंने सक्रिय रूप से मनाया, उस अनुभव का विवरण फिर किसी और लेख में करूंगा ।
हर बार दूरदर्शन पर परेड देख कर ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता था , पर अब तो वर्षों बीत गए , मेरा घर परिवार बस गया है, अब तो मेरी गुड़िया सुमेधा भी इतनी बड़ी हो गयी है कि उसे अपने विद्यालय के गणतंत्र दिवस पर भाग लेने जाना था । हर बार की तरह इस बार भी मेरा इरादा सुमेधा को स्कूल बस चढ़ा कर दूरदर्शन पर परेड देखने का ही था । पर जाने इस बार एक अजीब से बैचैनी थी , कुछ दिन पहले ही पठानकोट एयरफोर्स बेस पर आतंकी हमला हो के चुका था और सारा देश सुरक्षा की दृष्टि से हाई अलर्ट पर था । यही डर था कि आज के दिन फिर कहीं से कुछ अनिष्ट होने की खबर न मिले, फिर देश में कहीं कोई अप्रिय घटना न हो । परदे हटा कर मैं डाइनिंग टेबल पर बैठ गया, इतने में मेरी श्रीमती अमिता मेरे लिए चाय ले आई । चाय का आनंद ले कर मैं सुमेधा को बस स्टॉप तक छोड़ कर आ गया । मन अभी भी शांत नहीं था । मैंने अमिता को सुझाव दिया कि क्यों न हम सुमेधा के विद्यालय के पास वाले सिटी पार्क में चल कर बैठें , देश का माहौल अच्छा नहीं हैं, छुट्टी के वक़्त हम स्वयं ही स्कूल से सुमेधा को ले लेंगे । अमिता ने हां में हां मिला दी और हम सिटी पार्क की और रवाना हो गए । पार्क के पास पहुँच कर गाड़ी रोकी । गाड़ी से उतरने ही वाले थे कि एक जिज्ञासा ने दस्तक दी । विद्यालय में गणतंत्र दिवस किस तरह मनाया जा रहा होगा, क्यों न एक बार विद्यालय की चारदीवारी से नज़ारा लिया जाये। हमने विद्यालय का एक चक्कर लगाया, न कुछ बाहर से देख पाये, न सुन पाये, हम वापिस पार्क की तरफ हो लिए।
पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर अंदर चले गए। सिटी पार्क की खासियत ये है कि वहां एक लाइब्रेरी भी है और साथ में ही ओपन एयर थेटर भी। लाइब्रेरी का दरवाज़ा खुला हुआ था और कुछ बज़ुर्गवार, लेकिन ऊर्जा से परिपूर्ण खड़े दिखे। उनमें से एक के हाथ में गेंदे के फूलों की पत्तियां थी। हमने झिझकते-झिझकते उनमें से एक सज्जन व्यक्ति से पूछा कि क्या यहाँ ध्वजारोहण समारोह है। वो बोले कि हाँ,शहर के सीनियर सिटीजन्स मिलकर गणतंत्र दिवस मना रहे हैं पर आप भी सादर आमंत्रित हैं। कार्यक्रम ओपन एयर थेटर में आयोजित है। हमने उनका धन्यवाद किया और थेटर में चले गए।
थेटर के बीचों बीच एक ऊँचा चबूतरा बना हुआ था और उसके चारों ओर दर्शकों के बैठने के लिए सीढ़ियां। आयोजकों ने अग्रिम सीढ़ी के साथ ही कुछ कुर्सियां भी लगा रखी थी जो कि अब तक खाली थी। फिर भी कुर्सियां छोड़ हम द्वितीय सीढ़ी पर जा बैठ गए। थोड़ी देर में एक सज्जन व्यक्ति, बढ़िया सा लॉन्ग कोट पहने हुए सर पर एक टोपी और टोपी पर छोटे-छोटे तिरंगे के चिन्ह लगाये हुए,हमारी तरफ आये। उन्होंने हमारा इतने प्यार और आदर के साथ स्वागत किया ,चूंकि वो इस कार्यक्रम के मंच संचालक थे, इसलिए उन्होंने हमें भी कुछ प्रस्तुत करने का आमंत्रण दिया। मैं तो मानो इस घड़ी का बेसब्री से इंतज़ार ही कर रहा था। कुछ माह पूर्व स्वतंत्रता दिवस पर अपने तिरंगे के भावों को प्रकट करती हुई एक कविता लिखी थी, सोचा क्यों न वही कविता यहाँ सुनाई जाये। धीरे-धीरे लोगों का कार्यक्रम में आगमन शुरू हो गया, सब के सब ६० बरस की उम्र से बड़े, जीवन के अनुभव में सीनियर तो वो थे ही पर उनमे ऊर्जा एकदम बच्चो वाली ।
थोड़ी ही देर में सब ने राष्ट्र ध्वज को सलामी दी और राष्ट्र गान गाया । उसके बाद एक दम्पति ने हरमोनियम पर एक गीत सुनाया, " ऐ मेरे वतन के लोगो ज़रा आँख में भर लो पानी ....... " गीत ख़त्म होते होते वातावरण अत्यंत गमगीन , राष्ट्र भक्ति में डूबा हुआ हो गया । तभी मंच संचालक जी ने घोषणा की कि अब आप सब के सामने अपनी कविता प्रस्तुत करने आ रहे हैं हमारे युवा दोस्त, मेहमान श्री रंजन मगोत्रा । तेज कदम ताल करते हुए मैं मंच पर पहुंचा , माइक को थोड़ा एडजस्ट किया और दर्शकों से कहा , " गणतंत्र दिवस की आप सब को हार्दिक शुभकामनाएं , मैं ईश्वर का आभारी हूँ कि उसने मुझे इस पावन धरती पर जन्म दिया " इतना कहते ही मेरी आँखें नम हो गईं, भावुकता अपने चरम सीमा पर पहुँच गई, मेरा चेहरा भी मेरे जज़बातों का साथ पूरी तरह दे रहा था , गले से आवाज़ निकालना मुश्किल हो गया , बहुत कठिनाई से अपने आप को संभाला और अपना राष्ट्र भक्ति का गीत , " आज तिरंगा मेरा मुझ से ये पूछे रे ... " प्रारम्भ किया । गीत खत्म हुआ तो तालियों की गूँज ने मेरे हृदय को प्रसन्नता की चरम सीमा पर ला दिया । मंच संचालक जी ने मुझे और श्रीमती जी को धन्यवाद दिया और एक सुंदर भेंट दे कर सम्मानित किया । लड्डू और चाय का दौर भी चला , बधाईओं वाला दिन जो था । एक के बाद कई गीत चले , राष्ट्र भक्ति के भी और कुछ फ़िल्मी भी । एक राष्ट्र भक्ति के गीत पर दर्शक इतने गंभीर हो गए कि माहौल बदलने के लिए अमिता ने एक पंजाबी गीत सुनाया , " जा जा वे तेनु दिल दिता ....." इस गीत के साथ माहौल भी बदला और सभा का अंत भी हुआ । वहां से हमने सभी से भावभीनी विदाई ली। सुमेधा को विद्यालय से लेने का वक़्त भी हो चला था । अब वो सुबह की बेचैनी , तनाव और घबराहट सब गायब था । मन अति शांत और तनावरहित हो चुका था । पिछले कुछ घंटों के बिताये समय ने मेरे भीतर एक नयी ऊर्जा का संचार कर दिया था ।
रंजन मगोत्रा
मेरे अंतर्मन की आवाज़
मेरे अंतर्मन की आवाज़
कभी ख़ुशी
कभी गम
कभी प्यार
कभी विरह
न जाने कितने ही
दिल के भाव
कविता में समाये ।
जैसे दरिया की
रवानगी
कभी शांत
कभी उफान
कभी लहर पे लहर
बहती जाये
कविता भी यूँ ही
बह जाये ।
जैसे नृत्य
कभी एगुन
कभी दोगुन
अलग अलग तत्कार
अलग ही ताल
फिर भी सूत्र में बंध
कथा कह जाये ।
कविता भी यही
कमाल कर जाये।
जैसे फूल फूल
बने क्यारी,
क्यारी क्यारी
उपवन बन जाये
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
खुशबू से अपनी
जग महकाये
कविता भी यूँ ही
खिल जाये ।
जुड़ें शब्द शब्द
पंक्ति बन जाये
मुखड़े को फिर
रूप दे जाये
साथ में अंतरा जुड़ जाये
फिर मेरी कविता
कभी नज़्म बन जाये
कभी ग़ज़ल बन जाये
कभी बने तुकान्त
कभी अतुकांत
बन जाये
हर रूप में
हर रंग में
किसी के मन की
आवाज़ बन जाए
मेरा लिखना
सार्थक कर जाये।
यूँ ही निरंतर
“अमिता” कविता
कहती जाये।
अमिता गुप्ता मगोत्रा
कभी ख़ुशी
कभी गम
कभी प्यार
कभी विरह
न जाने कितने ही
दिल के भाव
कविता में समाये ।
जैसे दरिया की
रवानगी
कभी शांत
कभी उफान
कभी लहर पे लहर
बहती जाये
कविता भी यूँ ही
बह जाये ।
जैसे नृत्य
कभी एगुन
कभी दोगुन
अलग अलग तत्कार
अलग ही ताल
फिर भी सूत्र में बंध
कथा कह जाये ।
कविता भी यही
कमाल कर जाये।
जैसे फूल फूल
बने क्यारी,
क्यारी क्यारी
उपवन बन जाये
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
खुशबू से अपनी
जग महकाये
कविता भी यूँ ही
खिल जाये ।
जुड़ें शब्द शब्द
पंक्ति बन जाये
मुखड़े को फिर
रूप दे जाये
साथ में अंतरा जुड़ जाये
फिर मेरी कविता
कभी नज़्म बन जाये
कभी ग़ज़ल बन जाये
कभी बने तुकान्त
कभी अतुकांत
बन जाये
हर रूप में
हर रंग में
किसी के मन की
आवाज़ बन जाए
मेरा लिखना
सार्थक कर जाये।
यूँ ही निरंतर
“अमिता” कविता
कहती जाये।
अमिता गुप्ता मगोत्रा
"बेरोज़गारी "
लघुकथा
"बेरोज़गारी "
"देखने में तो अच्छे भले घर का लगता है ,पर भीख माँग रहा है "
"हाँ कोई मजबूरी रही होगी "
क्या पता, कोई बीमारी ही न हो , घर वाले भी परेशान हों और बीमारी की वजह से ये कुछ कर न पाता हो।
"अरे ऐसा कुछ भी नहीं है , कल किसी से यह कह रहा था कि स्नातकोत्तर डिग्री है इसके पास ,परन्तु बेरोज़गारी ने अपंग बना दिया। अब एक पढ़े लिखे व्यक्ति को नौकरी न मिले तो वो करे भी क्या ?"
वहां से गुजरता हुआ अपंग मज़दूर, उन लोगों की बातें सुन ,उस भिखारी की तरफ आश्र्यचकित तरीके से देखता हुआ आगे बढ़ता गया।
अमिता गुप्ता मगोत्रा
"बेरोज़गारी "
"देखने में तो अच्छे भले घर का लगता है ,पर भीख माँग रहा है "
"हाँ कोई मजबूरी रही होगी "
क्या पता, कोई बीमारी ही न हो , घर वाले भी परेशान हों और बीमारी की वजह से ये कुछ कर न पाता हो।
"अरे ऐसा कुछ भी नहीं है , कल किसी से यह कह रहा था कि स्नातकोत्तर डिग्री है इसके पास ,परन्तु बेरोज़गारी ने अपंग बना दिया। अब एक पढ़े लिखे व्यक्ति को नौकरी न मिले तो वो करे भी क्या ?"
वहां से गुजरता हुआ अपंग मज़दूर, उन लोगों की बातें सुन ,उस भिखारी की तरफ आश्र्यचकित तरीके से देखता हुआ आगे बढ़ता गया।
अमिता गुप्ता मगोत्रा
Friday, January 4, 2019
Meri Beti
कभी ठुमक ठुमक, कभी मटक मटक
वो सारे घर में चलती है
कभी माँ, कभी मम्मा, कभी मम्मी जी
मुझको हर वक़्त बुलाती रहती है ||
मेरी नन्ही सी परी , मेरी प्यारी परी
मुझको बहुत प्यार करती है
गलती हो जाए गर उस से तो
थोडा तो, मुझसे डरती है ||
डांट पड़ती है जब उसको मुझसे
तो गंगा जमुना उसकी आँखों से बहती है
रोती रहती है तब बस वो
बोल कर कुछ न कहती है ||
सांस ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे
उसकी अटकी रहती है
चैन नहीं तब तक पड़ता उसको
जब तक लाड (प्यार ) न मुझसे कर लेती है
फिर धीरे – धीरे , वो होले – होले
मेरी गोदी में सिमटती जाती है
फिर सकूं मिलने के बाद
पहले सी चंचल हो जाती है ||
वो चंचल परी ,वो नटखट बड़ी
मेरी बेटी , मेरी प्यारी सी गुडिया है
सदा आशीष रहे भगवान् की उसपर
बस यही , मेरी दुआ है
हरदम यही मेरी दुआ है ……
अमिता मगोत्रा
वो सारे घर में चलती है
कभी माँ, कभी मम्मा, कभी मम्मी जी
मुझको हर वक़्त बुलाती रहती है ||
मेरी नन्ही सी परी , मेरी प्यारी परी
मुझको बहुत प्यार करती है
गलती हो जाए गर उस से तो
थोडा तो, मुझसे डरती है ||
डांट पड़ती है जब उसको मुझसे
तो गंगा जमुना उसकी आँखों से बहती है
रोती रहती है तब बस वो
बोल कर कुछ न कहती है ||
सांस ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे
उसकी अटकी रहती है
चैन नहीं तब तक पड़ता उसको
जब तक लाड (प्यार ) न मुझसे कर लेती है
फिर धीरे – धीरे , वो होले – होले
मेरी गोदी में सिमटती जाती है
फिर सकूं मिलने के बाद
पहले सी चंचल हो जाती है ||
वो चंचल परी ,वो नटखट बड़ी
मेरी बेटी , मेरी प्यारी सी गुडिया है
सदा आशीष रहे भगवान् की उसपर
बस यही , मेरी दुआ है
हरदम यही मेरी दुआ है ……
अमिता मगोत्रा
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