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Saturday, December 11, 2021

Rubroo

सभी दोस्तों को "एक ख़्याल" की तरफ से नमस्कार

दोस्तो आजकल हम सब सोशल मीडिया पर बहुत व्यस्त हैं। इस बात से तो आप सब सहमत ही होंगें।
कोई अपनी लेखनी साँझा कर रहा तो कोई अपनी तस्वीरें, कोई अपनी पेंटिंग्स तो कोई अपने गाने। मतलब कुछ न कुछ चल ही रहा है। पर इसके साथ ही जो एक बात नोटिस हो रही है कि हम सब एक दूसरे की पोस्ट पर बिना समय दिए,कई बार यूँ ही लाइक कर आगे बढ़ जाते हैं। न उसके कहे को समझते हैं न ही उस इंसान को। सिर्फ और सिर्फ लाइक्स और कमैंट्स की दौड़ में उलझ कर रह गए हैं। 
हम लोग कोई सेलिब्रिटीज तो हैं नहीं कि हमें सब लोग जानते हों। हां पर मगर हम लोग आपस में इस सोशल मीडिया पर जुड़े ही हैं तो क्यों न एक दूसरे को जानें । और किसी न किसी से कुछ अच्छा सीखें। 
इन्हीं सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए " एक ख़्याल" एक पहल करने जा रहा है। हफ़्ते या पन्द्रह दिन में किसी न किसी को आपसे रूबरू करवाया जाए।
उम्मीद है हमारी ये पहल आप सबको पसंद आएगी। कृपया अपने कमैंट्स के ज़रिए हमें बताना ज़रूर।

एक ख़्याल

अमिता रंजन

Aparna Jha




 वो कहते हैं ना कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। मेरी प्रिय सखि अपर्णा झा जी ने ये बात साबित भी करी है। चलिए आज अपने रूबरू कार्यक्रम के अंतर्गत पहली कड़ी में रूबरु करवाते हैं अपर्णा झा जी से। 

अपर्णा जी एक बहुत अच्छी लेखिका तो हैं ही, ये तो हमारे बहुत फेसबुक मित्र जानते हैं। पिछले कुछ समय से अपर्णा जी ने कलम के साथ साथ ब्रश भी हाथ में उठा लिया और थोड़े ही समय के अभ्यास के साथ क्या क्या बढ़िया तस्वीरें बनाई। उनमें से कुछ यहां साँझा कर रही हूँ। उनकी लेखनी की तरह ही उनकी तस्वीरों में भी एक कहानी छिपी रहती है, जिसका पढ़ने का इंतज़ार मुझे व्यक्तिगत तौर पर रहता है । फेसबुक पर मिलने वाले लाइक्स के पीछे इनकी दौड़ नहीं होती और न ही उस के चक्कर में कुछ भी लिख कर या बना कर परोस देती हैं।






इसके साथ साथ राजनीति पर भी अपनी पैनी नज़र बनाए रखती हैं। आजकल गार्डनिंग का भी बहुत शौक है इनको। बहुत से फूल पौधे लगाए हुए हैं अपने घर आँगन में इन्होंने। हर छोटी से छोटी बात में एक नायाब सी खुशी ढूंढ लेती हैं। निराशा भरे माहौल को आशा में बदल देती हैं। दोस्ती निभाना भी कोई इनसे सीखे। एक बार हम लोगों का दिल्ली जाना हुआ तो फरीदाबाद से दो दो मेट्रो बदल कर अकेली आईं हमसे मिलने। नहीं तो कभी कोई अपने शहर में भी ढंग से नहीं मिलता । 

और क्या लिखुँ ...यूँ ही बने रहिएगा। और सब को प्रेरणा देती रहें।

Thursday, April 18, 2019

विश्व धरोहर दिवस

आज विश्व धरोहर दिवस है.
क्या आप इसके बारे में जानते हैं?क्या आपने अपने बच्चों से कभी इस बारे में बात की है?
जितना आप बाज़ार को जानते हैं क्या उसके आधा भी अपने धरोहरों को जानते हैं?
क्या आप धरोहर के महत्व को समझते हैं?
याद रखिये यह हमारे लिये मूर्त इतिहास के गवाह हैं और संस्कृति के संवाहक भी.आप अपने इतिहास को कितना जानते है,अपनी संस्कृति को कितना जानते हैं, आपके जीवन में इसका कितना महत्व है...यह सब मिलाकर आपका एक व्यक्तिव निर्माण होता है. आप अपने बहुत को कितना जानते,समझते हैं और इसी पर भविष्य की नींव मजबूत होती है.
ध्यान रखिये की अपने भविष्य के इसे सहेज कर रखें,क्योंकि इससे खूबसूरत उपहार उनके पूर्वजों द्वारा प्रदत्त और कुछ नहीं.
अपने देश,अपनी मातृभूमि के अनुराग और वैश्वीकरण के प्रति लगाव का एक प्रमुख आकर्षण ये धरोहर भी हैं.यदि ऐसा ना होता तो विश्व पटल पर UNESCO world heritage की स्थापना ना होती.
अपर्णा झा

छवि : वेब इमेजेज

Wednesday, March 27, 2019

वोट अपील

*Congratulations!* for being shortlisted for the next phase of *Women WRITE Now Competition* - *Voting Phase*.

Story : 'स्मृति अशेष'

Hello, I feel very happy to announce that I have been selected by StoryMirror for phase 2 of Women WRITE Now Competition. Now I need your support to win the competition.  Please visit this link: https://awards.storymirror.com/women-write/hindi/story/
Go to my name (You can search for my name in search bar) and click on vote button.
You will have to login to StoryMirror to vote for me. Please Vote!

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2255362301447227&id=100009204370050&sfnsn=mo

Thursday, March 7, 2019

महिला सशक्तिकरण


कोमल है कमज़ोर नहीं तू शक्ति का नाम ही नारी है....... क्या खूब पंक्तियाँ हैं इस गीत की।
हमारे देश में यूँ तो माँ दुर्गा की पूजा होती है जो कि एक शक्ति का ही रूप हैं। पर फिर भी महिला सशक्तिकरण की ज़रूरत आ पड़ी यहाँ। इसकी ज़रूरत क्यों आई  या फिर क्या ये हर वर्ग की औरतों के लिए ही चाहिए थी , क्या आज इससे हर महिला को लाभ मिल रहा है या फिर कहीं कहीं महिलाएं ही तो इसका दुरूपयोग नहीं कर रही ये सब जानना भी उतना ही ज़रूरी है। सदियों से यही रटी - रटाई बात दोहराई जाती है कि कहीं न कहीं महिला को कमतर आँका जाता है इस पुरुषप्रधान समाज में। इसमें १०० फीसदी झूठ भी नहीं है। महिलाओं के पास अधिकार होना तो दूर की बात होती थी उनको अपने अस्तित्व को साबित करना ही बहुत मुश्किल होता था। एक आम महिला की क्या बात करें रानियों - महारानियों को परदे में रहना पड़ता था।उनके लिए भी कानून राजमहल के राजकुमारों से भिन्न ही होते थे। शिकार पर जाना , युद्ध में जाना ये काम राजकुमारों के ही समझे जाते थे। समय समय पर कुछ राजकुमारियों ,वीरांगनाओं ने इस घिसे-पिटे नियम से उप्पर उठ कर काम किया।चलिए वापिस एक आम महिला पर आते हैं। समय के साथ साथ हमारे देश में भी बहुत से बदलाव आये महिलाओं के लिए।  बालिग होने पर ही शादी का अधिकार मिला , दहेज़ प्रथा ,सती प्रथा जैसी अनेक कुरीतियों के खिलाफ कुछ नियम बने जो की महिलाओं के लिए बहुत कारगर साबित भी हुए। पर क्या सचमुच इस सब से महिला सशक्तिकरण हो गया। जब तक पूरा समाज और खुद लड़कियां ये नहीं समझ लेती कि पढ़ाई लिखाई , खेल कूद , नौकरी करना , अपने विचार सबके साथ साँझा करना और ज़िन्दगी को अपनी नज़र से देखते हुए आगे बढ़ना  उनके लिए भी उतना ही जरुरी है जितना की लड़कों के लिए तब तक जितने मरज़ी कानून बनते रहें कोई फायदा नहीं होने वाला। जब तक इस सब की जानकारी हर अमीर गरीब , जाति पाती की लड़कियों तक नहीं पहुंचती ये सशक्तिकरण बस मुट्ठी भर लोगों के लिए ही रह जायेगा।

                                          हर सिक्के के दो पहलु होते हैं। तो इसके भी हैं।  कई जगह लड़कियां अपने लिए बने कानून का नाजायज़ फायदा उठती हैं और कुछ पुरुषों या ससुराल वालों को परेशान करती हैं। और फिर कानून ऐसे बने होते हैं कि लड़का या लड़के वाले कितना भी हाथ पाँव मार लें , सर पटक लें पर कानून के दाँव पेच में फँस ही जाते हैं। इस पहलु पर भी गौर करना अत्यंत ज़रूरी है।
                                         तो महिला सशक्तिकरण जितना जरुरी है उतना ही उसको ठीक तरीके से अपनाना भी।महिला ने किसी को साबित करके नहीं दिखाना की वो क्या है और क्यों साबित करना है किसको करना है ???? अगर लड़की अच्छा पढ़ी लिखी होगी , शारीरिक तौर पर बलशाली होगी , मजबूत व् पक्के इरादे होंगे तो वो अपने कोमल हृदय के साथ भी समाज को सिर्फ आईना दिखाने में ही सफल नहीं होगी बल्कि समाज को एक नए रूप में बदलने में कामयाब हो सकती है। देर है तो बस हर तबके तक इन चीज़ों को पहुंचने की और एक सन्देश की कि "कोमल है कमज़ोर नहीं तू शक्ति का नाम ही नारी है जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझ से हारी है "

अमिता गुप्ता मगोत्रा 
 मौलिक रचना
Photo credit : INTERNET